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गहराई ज़ख़्म की किसी को दिखाता नहीं हूँ - Gehrai Jakhm Ki


गहराई ज़ख़्म की किसी को दिखाता नहीं हूँ,
 माफ़ तो कर देता हूँ मग़र मैं भुलाता नहीं हूँ।

कर के नेकियां फेंक देता हूँ दरियाओं में मैं,
 एहसान तो करता हूँ मग़र जताता नहीं हूँ।

मुझे भी ख़बर है किसके गुनाह हैं कितने,
 सरेआम किसी पे उंगली मग़र उठाता नहीं हूँ।

क़तरा क़तरा करके मैं भी बेचता हूँ ख़ुद को, 
अपने ईमान की बोली मग़र लगाता नहीं हूँ।

इन अँधेरों से ख़ौफ़ मैं भी बहुत खाता हूँ,
फ़र्क इतना है मेरे दोस्त, के मैं बताता नहीं हूँ!!


 

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