1.
नहाय धोये से हरि मिले
तो मैं नहाऊं सौ बार
हरि तो मिले निर्मल ह्रदय से प्यारे
मन का मेल उतार
2.
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
3.
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।
4.
कबीर
नारी निंदा ना करो,
नारी रतन की खान।
नारी से नर होत है,
ध्रुब प्रहलाद समान।।